शनिवार, 27 जून 2009

बुजुर्गों से दुर्व्यवहार पर सरेआम कोडे ?


हथीन के एक गांव की पंचायत ने बुजुर्गो से दुर्व्यवहार करने वालों को सामाजिक रूप से सजा देने का ऐलान किया है। पंचायत में फैसला किया गया कि माता-पिता से दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति को सरेआम 11 कोड़े लगाए जाएंगे और 2100 रुपये जुर्माना किया जाएगा। इस तरह के निर्णय को कानून हाथ में लेने वाला ही कहा जाएगा। क्या इसे उचित माना जा सकता है ?

यह सही है कि माता-पिता और बुजुर्गो की देखभाल करना संतानों का दायित्व है और अब इसके लिए कानून भी बनाया जा चुका है, जिसमें दोषी संतानों के लिए सजा का प्रावधान है। पर यह भी शर्मनाक सच्चाई है कि बुजुर्ग मां-बाप संतानों की उपेक्षा व अपमान के शिकार हो रहे हैं। वे जिन संतानों का लालन-पालन बड़े अरमानों से करते हैं, उन्हीं की उपेक्षा का दंश सहने को विवश हैं। बुढ़ापे में जो असहनीय पीड़ा उन्हें झेलनी पड़ती है, उसका अंदाजा इन कुमति संतानों को नहीं हो सकता। ऐसे में यह मामला कानूनी से अधिक सामाजिक है। इससे निपटने को समाज को आगे तो आना ही चाहिए, लेकिन ऐसा करते समय ऐसे कदम नहीं उठाए जाने चाहिए कि समाज ही ज्यादती करता नजर आए।

पंचायत के फैसले का भले ही समर्थन न किया जा सके, लेकिन यह समस्या की गंभीरता की ओर इंगित तो करता ही है। आज जगह-जगह वृद्धाश्रम खुल रहे हैं और संतानों के अन्याय के शिकार बुजुर्ग वहां शरण लेने को मजबूर हो रहे हैं। संतानों द्वारा माता-पिता को प्रताडि़त करने की घटनाएं आए दिन सामने आ रही हैं। ऐसे में सामाजिक जागरूकता से ही कुछ हो सकता है। पर इसके लिए ऐसे फरमान जारी करना न तो उचित लगता है और न जरूरी। समाज के लोगों को चाहिए कि इस तरह के व्यक्तियों को समझाएं और उसके बाद भी वे सही रास्ते पर न आएं तो उन्हें कानून के दायरे में लाया जाए।

अधिकारियों को भी इन मामलों में तत्परता दिखानी चाहिए, क्योंकि देखा यह जाता है कि ऐसे मामले सामने आने के बावजूद प्रशासन कार्रवाई करने में हिचक जाता है। जब तक प्रशासन ऐसे मामलों में संवेदनशील नहीं होगा, समस्या का हल संभव नहीं है। समाज व प्रशासन जब अपनी भूमिकाओं को निभाएंगे तो माता-पिता के प्रति अन्याय करने वाली संततियों को सबक सिखाना आसान हो जाएगा।

रविवार, 10 मई 2009

.....तो इसका दायित्व संस्था का नहीं होगा

मीनू से सात लोगों की सेवाएं समाप्त
अजमेर। जिले के चाचियावास गांव में मानसिक विमंदित बच्चों के लिए कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्था मीनू मनोविकास मंदिर से पिछले दिनों एक साथ 7 लोगों की सेवाएं समाप्त कर दी गई है। इन सात लोगों के बारे में संस्था ने बच्चों के अभिभावकों को सावचेत किया है कि यह सातों लोग संस्था के नाम से अगर बच्चों को कोई प्रशिक्षण देते हैं या पैसा लेते हैं तो इसकी जिम्मेदारी संस्था की नहीं होगी।

इस मामले में सम्पर्क करने पर संस्था की ओर से कहा गया कि इन लोगों की सेवाएं सामान्य प्रक्रिया के तहत समाप्त की गई हैं। जबकि संस्था से निकाले गए लोगों के प्रतिनिधि कहते हैं कि सब कुछ असामान्य तरीके से हुआ है और काफी कुछ असामान्य हो रहा है।संस्था की ओर से अभिभावकों के लिए जारी पत्र यहां हूबहू दिया जा रहा है।

मीनू मनोविकास मंदिर, चाचियावास जिला अजमेर

आवश्यक सूचना

माननीय अभिभावक महोदय,

आपको यह सूचित किया जाना आवश्यक समझा गया है कि संस्था द्वारा आपके बच्चे के शिक्षण - प्रशिक्षण हेतु राजेश यादव, रमा शंकर यादव, गणेश यादव, हरि शंकर पाण्डेय, विकास पाण्डेय, चन्देश यादव एवं सूरेन्द्र यादव निवासी इलाहाबाद (यूपी)को गत दो वर्षों से आपके घर भेजा जाता रहा है संस्था द्वारा इनकी सेवाएं मार्च 2009 से समाप्त कर दी गई हैं।

अत: आपसे अनुरोध है कि यदि उपरोक्त व्यक्ति संस्था के नाम का किसी भी प्रकार का उपयोग कर आपके बच्चे को प्रशिक्षण देते हैं या पैसा लेते हैं तो इसका दायित्व संस्था का नहीं होगा। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप अपने बच्चे के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए सीधा सम्पर्क संस्था के निम्र फोन नम्बरों पर करें। फोन नम्बर : 2794481, 2794482, ३२९०४३९

सधन्यवाद

(विजय शर्मा)

समन्वयक (शिक्षा)

गुरुवार, 7 मई 2009

फीस में मनमानी, कर में आनाकानी

जयपुर। राजस्थान में समाजसेवा की ओट में निजी स्कूल संचालित कर मनमानी फीस वसूल रहे करीब 200 संस्थानों को सरकार ने बकाया गृहकर और विकास शुल्क जमा करने के नोटिस जारी किए हैं। बकाया रकम करोंड़ों रुपये में है। इनमें ज्यादातर वह संस्थान शामिल हैं जो पिछले दिनों बच्चों के अभिभावकों से मनमानी फीस वसूलने के मामले में चर्चा में चल रहे हैं।

यह संस्थान पिछले कई वर्षों से नगरीय विकास कर और बकाया गृहकर नहीं चुका रहे। नगर निगम ने नगर पालिका अधिनियम 2009 के तहत इन्हें धारा 149 के अन्तर्गत नोटिस जारी किए हैं। नोटिस में यह भी उल्लेख किया है कि अगर अब भी इस मामले में लापरवाही बरती गई तो 40 दिन के बाद इनके खिलाफ सीलिंग की कार्रवाही भी हो सकती है।

गुरुवार, 30 अप्रैल 2009

....और 12 साल की उम्र में बना दिया 'मॉं'


बिन मां की बच्ची को बनाया मां

दो दिन पहले अक्षय तृतीया पर जब पूरा प्रशासन और अनगिनत एनजीओ बाल विवाह रोकने की मुहीम पर जोर-शोर से जुटे थे, तब राजधानी में एक 'गर्भवती किशोरीÓ प्रसव पीड़ा से परेशान फुटपाथों पर घूम रही थी। बुधवार को इस बच्ची ने फुटपाथ पर ही एक और बच्ची को जन्म दिया। जयपुर शहर में 45 डिग्री सेल्सियस तापमान वाली तपती धूप में इस खानाबदोश किशोरी पर घंटों तक किसी की नजर नहीं पड़ी।

इस दौरान राष्ट्रीय मुद्दों पर नारे लगाते हुए वोट मांग रहे लोगों की एक रैली और लॉ एंड ऑर्डर संभालती पुलिस की जीपें वहां से गुजरी। यहां तक की महिलाओं के दुख-दर्द का जिम्मा उठाने वाले किसी एनजीओ के कार्यकर्ताओं की निगाह भी इस पर नहीं पड़ी। फुटपाथ पर नवजात बच्ची के साथ पड़ी इस 12 साल की किशोरी को देख कर खानाबदोश महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली यौन ज्यादतियों की एक ओर विकृत तस्वीर सबके सामने थी। किसी ने किशोरी के पिता को इसकी खबर की और किसी ने 108 एम्बुलेंस को फोन किया। नाबालिग मां और नवजात को महिला चिकित्सालय पहुंचाया गया। यहां डाक्टरों ने बताया कि अब नाबालिग जच्चा और उसका बच्चा दोनों कुशल हैं।

अस्पताल में किशोरी के बदहवास पिता ने बताया कि किशोरी की मां इसे जन्म के कुछ अर्से बाद ही इस संसार से विदा हो गई थी, बच्ची को उसी ने पाला है। बाप बेटी सड़क किनारे से कचरा बीन कर अपना पेट पालते हैं। लड़की पर वह भरसक नजर रखता रहा, लेकिन पता नहीं कब? किसने? कैसे? इसे मां बना दिया। उधर लड़की ने यह बताकर सबको चौंका दिया कि उसने साथ कचरा बीनने वाले राजू नामक एक लड़के से प्यार किया और उसके साथ शादी भी की, राजू के साथ उसका साथ एक माह तक रहा। अब वो उसे छोड़कर भाग गया है। पिता ने इस घटनाक्रम से स्वयं को अनजान और बेटी को अविवाहित बताया।

फिलहाल अस्पताल के चिकित्सकों ने पिता कि हालत और बिन मां की बच्ची के मां बनने की स्थिति को देखते हुए जच्चा-बच्चा को गांधी नगर के शिशु गृह में भेजने की सिफरिश की है। अब पुलिस और प्रशासन सक्रीय हो गया है और आशा है एक दो दिन में उन संस्थाओं के कार्यकर्ता भी सक्रीय हो जाएंगे जो नि-संतान दम्पत्तियों को बच्चे गोद दिलाने की सेवा में जी-जान से जुटे रहते हैं।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

पंजीकृत सोसायटियों पर कसेगी लगाम

मनमानी करने वाली संस्थाओं पर प्रशासक तैनात होंगे
विभिन्न स्कूल संचालित करने वाली सोसायटियों की निरंकुशता से परेशान सरकारों ने अब उन पर लगाम कसने की तैयारी कर ली है। इसकी पहल राजस्थान से होने जा रही है। पिछले दिनों राजस्थान में स्कूल फीस में मनमाने तरीके से बढ़ोत्तरी करने के मामले को लेकर छिड़ी बहस के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी ने यह प्रस्ताव रखा कि क्यों न ऐसी सोसायटियों पर सरकारी प्रशासक तैनात कर दिए जाएं? राज्य सरकार ने इस पर अपनी सहमति जताते हुए जल्द ही प्रस्ताव भेजने की बात कह कर अपना रवैया इस मसले पर साफ कर दिया है।

जयपुर में सचिवालय के गलियारों तक निकल कर आई आहटों से पता चला कि सबसे पहले अजमेर जिला प्रशासन की ओर से इस आशय का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है। इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद ऐसी कुछ रजिस्टर्ड सोसायटियों में प्रशासक की नियुक्ति हो जाएगी। राजस्थान में निजी स्कूलों का संचालन करने वाली अनेक सोसायटियां राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त करती हैं। इन सोसायटी से संबंधित स्कूलों में शिक्षकों, कर्मचारियों सहित सरकार से भी किसी न किसी मसले पर विवाद होते रहते हैं। गंभीर मामलों में अदालती कार्यवाही की नौबत आ जाती है और इसका खामियाजा विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को भी भुगतना पड़ता है। राजस्थान में इन दिनों तेज गर्मी के कारण स्कूल टाइम को लेकर ही विवाद है। सरकार को इसमें भी दखल देना पड़ा है।

कुल मिलाकर मनमानी करने वाली संस्थाओं को लेकर सरकार ने कड़ा कदम उठाने का मानस बना लिया है। प्रदेश की राजधानी जयपुर में स्कूल फीस को लेकर उठे बवाल का निपटारा अभी तक नहीं हो सका है। अजमेर में अग्रवाल और गुरूनानक स्कूल के प्रबंधकों और कर्मचारी शिक्षकों के बीच चले विवाद ने सरकार को काफी परेशान कर रखा है। उधर टोंक, भीलवाड़ा और नागौर के कुछ स्कूलों में भी विवाद के चलते स्कूलों की शैक्षिक और आर्थिक हालत खराब है। आंदोलन और शिकायतों के कारण पढऩे-पढ़ाने का काम प्रभावित है। प्रदेश का शिक्षा विभाग इस हालात से काफी चितिंत है और प्रशासनिक अधिकारियों से स्थिति पर अंकुश लगाने के तरीकों की चर्चा में लगा है।

अजमेर के संभागीय आयुक्त अर्थात डीवीजनल कमीशनर से जब इस संबंध में सम्पर्क किया गया तो उनका का कहना था कि इस बारे में शिक्षा विभाग के अधिकारियों से चर्चा हुई है उनके प्रस्ताव के आधार पर ऐसी सोसायटियों पर प्रशासक की नियुक्ति के लिए सरकार को लिखा जा रहा है। फिलहाज लोकसभा चुनाव के चलते कुछ समय लग रहा है, चुनाव के बाद इसे सही गति मिल जाएगी।